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भारतवर्ष में आरक्षण की राजनीति चरम सीमा पर है

भारतवर्ष में आरक्षण की राजनीति चरम सीमा पर है जो जातियां सदियों से धन धरती और शासन सत्ता का सुख भोग रही है और आज भी धन धरती और शासन सत्ता की बागडोर उनके ही हाथों में रहे वे जातियां आज भी सेमिनार, विचार गोष्ठी, प्रदर्शन, रेल रोको आंदोलन, रोड जाम कर के, संसद भवन का घेराव करके अपनी आने वाली संतानों के हित में चिंतन व मनन करके संघर्ष जारी किए हुए हैं दूसरी तरफ कुम्हार प्रजापति समाज को सदियों से बुद्धिहीन धनहीन बनाकर शासन सत्ता से दूर रखा गया है वह आज अपने आप को दक्ष प्रजापति ब्रह्मा की संतान मानकर मिथ्या गौरवान्वित हो रहा है कुम्हार समाज लक्ष्मी की पूजा करता है लेकिन लक्ष्मी रूपी धन से हजारों मील दूर है। सरस्वती की वंदना करता है पर शिक्षा से दूर दूर तक वास्ता नहीं है। समय-समय पर समाज सुधारक जिनमें प्रमुखतया: प्रजापति बांका कुम्हार, प्रजापति मखली दत्त गौशाल, गौरवा कुम्हार, प्रजापति संतराम बीए, महात्मा धोंधिराम नामदेव प्रजापति आए जिन्होंने स्वयं जाकर समाज को जगाने की बात कही और समाज के अधिकारों के लिए वोट की ताकत को समझाने का प्रयास किया। लेकिन हमने महापुरुषों की बात को नहीं माना हमने वोट के अधिकारों को समझा ही नहीं है वोट की ताकत को जाना नहीं है और जिसने हमें बताने की कोशिश की उसकी बात को हमने माना नहीं है। जिस समाज के लोग अपने इतिहास को नहीं जानते, वह समाज कभी भी अपने हक अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकता है। उस समाज के लोग कभी इतिहास लिख भी नहीं सकते हैं। आपको अपने गौरवमय् अतीत को जानना होगा ।

महात्मा ज्योतिबा फुले ने कहा था शिक्षा के अभाव में बुद्धि गई बुद्धि के अभाव में नीति गई नीति के अभाव में गति गई और गति के अभाव में धन गया धन के अभाव में शूद्र कुम्हार हताश और गुलाम बन कर रह गए। राजनेतिक सत्ता वह मास्टर चाबी है जिसके माध्यम से प्रजापति समाज के लोग अपने तरक्की और सम्मान के सभी दरवाजे खोल सकते हैं। महात्मा धोंधिराम नाम देव प्रजापति ने भी कहा था शिक्षा मानव को बंधनों से मुक्त करती है जाती पाती ऊंच-नीच जैसी विषमताओं से दूर करती है राष्ट्रीय सामाजिक भावनाओं को जगाती है इसलिए प्रजापति समाज के लोगों को शिक्षित बनकर अपने विकास का मार्ग स्वयं तय करना चाहिए। प्रजापति संतराम बीए ने कहा था जाति विहीन समाज की स्थापना करके ही देश व समाज की तस्वीर बदली जा सकती है इसके लिए उन्होंने 1922 में जात पात तोड़क मंडल की स्थापना की ओर जीवन पर्यंत उस के माध्यम से समाज को जागृत करते हुए स्वयं को एक उदाहरण के रूप में पेश किया।

साथियों जिस समाज का इतिहास नहीं होता वह समाज कभी शासक नहीं बन सकता क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है प्रेरणा से जागृति आती है जागृति से सोच बनती है और सोच से ताकत बनती है ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है प्रजापति समाज के वीर सपूतों जाग जाओ, डरो मत, ना भागो ना घबराओ आज राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ आपका सजग प्रहरी है खुशहाली आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है अपना दीपक स्वयं बनो।

प्रजापत समाज के सम्मानित साथियो शासक बनो संसद सत्ता का मंदिर है हमें उसमें प्रवेश करना है ताकि समाज के लोग किसी और पर आश्रित ना रहकर अपना उद्धार स्वयं कर सके। हमें वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा नहीं चलेगा अपने नारे को हकीकत में बदल कर संसद पर कब्जा करके देश की हुकमरान जमात बनना होगा। ताकि प्रजापति समाज अपने गौरवशाली व न्याय पूर्ण शासन से भारत को पुन्: सोने की चिड़िया कहलाने वाला एक संपन्न एवं खुशहाल देश बना सके। साथियों जिस समाज का बल नहीं होता उस समाज का कोई दल भी नहीं होता और जिस समाज का कोई दल नहीं होता उस समाज की समस्याओ का भी कोई हल नहीं होता।

(जो लेई निज बल से लेइ, कोई काहू को कछु ना देई)

 

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